Monday, October 6, 2008

उम्मीद



उम्मीद के दिये के तले

जो बैठा गूढ़ अँधेरा है,

ओ मेरे दिल-ऐ-नादान

तेरा भी वहीँ बसेरा है!

क्यूँ व्यर्थ की आस है,

मेरे लिए भी सवेरा है,

जिस सुबह की बात करे तू,

उसपे ज़ोर न तेरा है न मेरा है।

क्या पता उस रोज़,

न सूरज उगे, न सवेरा हो,

सूरज की किरणों के ऊपर,

बादलों का डेरा हो,

रोशन फिजाओं की जगह,

घनघोर फैला अँधेरा हो।

खुशियों ने संगीत नहीं,

गम की विलाप सुरा हो।

उम्मीद के अश्व पे आरोह कर,

संभलने की चाह न करना,

झूठी आस लिए दिल में,

ख़ुद को गुमराह मत करना,

जाने कितने ही घर,

इसकी आंधी में उड़ गये,

बिखर जाए जो घर तेरा भी,

अफ़सोस कर आह न करना।